पर्यावरण संरक्षण (Paryavaran Sanrakshan) आज के समय की एक अत्यंत महत्वपूर्ण आवश्यकता बन गई है। हमारी पृथ्वी, जो जीवन के हर रूप को पोषित करती है, प्रदूषण और प्राकृतिक संसाधनों के अत्यधिक दोहन से गंभीर संकट का सामना कर रही है। वनों की कटाई, जलवायु परिवर्तन, वायु और जल प्रदूषण जैसी समस्याएँ न केवल प्राकृतिक संसाधनों को प्रभावित कर रही हैं बल्कि मानव स्वास्थ्य और समग्र पारिस्थितिकी तंत्र को भी खतरे में डाल रही हैं। इस स्थिति से निपटने के लिए, पर्यावरण संरक्षण की दिशा में ठोस प्रयास और प्रभावी नीतियों की आवश्यकता है। पर्यावरण संरक्षण का अर्थ केवल प्राकृतिक संसाधनों को बचाना नहीं है, बल्कि यह हमारे जीवन की गुणवत्ता को सुधारने, जलवायु को स्थिर रखने, और भावी पीढ़ियों के लिए एक सुरक्षित और स्वस्थ पृथ्वी सुनिश्चित करने का प्रयास है।
पर्यावरण संरक्षण (Paryavaran Sanrakshan) का मतलब है प्राकृतिक संसाधनों और पारिस्थितिकी तंत्र को संरक्षित और सुरक्षित करना, ताकि भविष्य की पीढ़ियों के लिए स्वस्थ और संतुलित वातावरण सुनिश्चित किया जा सके।
मुख्य प्रकारों में वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण और मृदा प्रदूषण शामिल हैं।
जलवायु परिवर्तन मुख्य रूप से ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन, जैसे कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन, और मानव गतिविधियों जैसे कि वन कटाई और औद्योगिक विकास के कारण होता है।
सरकार वायु गुणवत्ता मानक, जल प्रदूषण नियंत्रण, वन संरक्षण कानून, और अंतर्राष्ट्रीय समझौते जैसे पेरिस समझौता और क्योटो प्रोटोकॉल लागू करती है।
सतत विकास आर्थिक और पर्यावरणीय संतुलन को बनाए रखने के लिए आवश्यक है, जो दीर्घकालिक स्थिरता, संसाधनों का विवेकपूर्ण उपयोग, और सामाजिक समानता को बढ़ावा देता है।